
विनय न मानत जलधि जड़
गये तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब
भय बिन होय न प्रीत
विनय न मानत जलधि जड़
गये तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब
भय बिन होय न प्रीत
भय बिन होय न प्रीत
भय बिन होय न प्रीत
भय बिन होय न प्रीत
भय बिन होय न प्रीत
हरे राम राम राम
राम राम राम राम
हरे राम राम राम राम
हो त्रिभुवन में
सर्वत्र तुम्हीं
विस्तार कौन नापे
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